राजेश गुलाटी ने अनुपमा गुलाटी के 72 #टुकड़े किए और D फ्रीजर में रक्खा आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े

مکتب تکمیل لعلوم جگدیسپور کمپوٹر کلاس

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 जी हाँ २००८ से खरीद कर ४ कम्प्यूटर रक्खे गये हैं जिसे कभी लगने नहीं दिया गया  علم حاصل کرو چاہے چین ہی جانا پڑے  اطلبوا العلم ولو بالصین․ जिसका विरोध स्कूल के प्रिंसपल साहब ने किया  यह सब यहाँ नहीं चल सकता यह मुंबई नहीं है  २०२० अच्छी शिक्षा  के लिए पूर्व BSF के  DIG नईम साहब को लाया गया स्कूल को जदीद तालीम से आरास्ता करने के लिए उन्होंने LED वाई फाई लगवाने को कहा जिसे कमेटी ने लगवा दिया परन्तु इस बार भी प्रिंसपल ने उनको स्कूल में पढ़ाने पर ऐतराज़ किया और स्कूल से LED और वाईफाई और वायरिंग सब गायब  करदी गई  अरबी की बेहतरीन तालीम के लिए मौलाना अलीम साहब फ्री में पढ़ाने को तैयार हुवे और उनको लाया गया परन्तु प्रिंसपल साहब ने उन्हें पढ़ाने के लिए  बच्चे ही नहीं दिए सभी बड़ी उम्र के लोग यह जानते हैं आज   से   ४४ साल पहले  १९८० में बाढ़ आयी थी पानी स्कूल के अंदर तक आगया था  स्कूल की ईमारत में सगाफ होगया था  उस वक़्त के ज़िम्मेदारों ने इंजीनियर को बुलवाया और स्कूल दिखाया तो इंजीनियर ने स्कूल खाली करने को कहा था  कई महीन तक स्कूल के बॉउंड्री और ब्रानदौं में पढ़ाया गया  यह इमारत बहोत पुरानी होचुकी है  प

फूलमणि की मौत के साथ तेज़ हो गई थी. 1890 में फूलमणि की उस वक़्त मौत हो गई थी, जब उनके 30 साल के पति हरि मैती उनसे शारीरिक संबंध बना रहे थे.

 ग़ैर-ब्राह्मणों को तो बढ़ईगिरी, लुहार, राज मिस्त्री के काम और दर्जीगिरी सिखाई जानी चाहिए. उनका जो दर्जा है, उसके लिए यही काम सबसे मुफ़ीद हैं."










भारत में क़ानूनन तलाक़ लेने वाली पहली महिला




दरअसल, रकमाबाई पढ़ी-लिखी थीं और उन्होंने अपने निरकुंश पति दादाजी भीकाजी के साथ रहने से इनकार कर दिया था. रकमाबाई हमेशा अपने साथ मार-पीट की आशंका से डरी रहती थीं. इसलिए उन्होंने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया था.


तिलक ने 'इसे पूरी हिंदू नस्ल की नाक का सवाल बना दिया था.' अपने साप्ताहिक अख़बार के आठ पन्नों में पूरे छह पेज भर कर उन्होंने दादाजी का समर्थन किया.

उन्होंने लिखा, 'अगर रकमाबाई अपने पति के साथ जाने से इनकार करती हैं तो उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए.' वे लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहे कि रकमाबाई और सरस्वती बाई (पंडिता रमाबाई) जैसे महिलाओं को वैसी ही सज़ा मिलनी चाहिए जैसी चोरों, व्यभिचारियों और हत्यारों को मिलती है. (The Mahratta, 12 June 1887)

रकमाबाई का केस 'सहमति की उम्र' विवाद से भी जुड़ा था क्योंकि उनकी शादी बचपन में ही हो गई थी. दरअसल, यह बहस बीएम मालाबारी के इस प्रस्ताव के साथ उठ खड़ी हुई थी कि लड़कियों की शादी की उम्र 10 साल से बढ़ाकर 12 साल कर दी जाए.

तिलक ने इस मामले में भी जीजी अगरकर, महादेव गोविंद रानाडे और दूसरे सुधारवादी नेताओं पर हमले किए. इस मामले में तिलक ने जो लिखा, उन्हें यहाँ शालीनता के लिहाज़ से उद्धृत नहीं किया जा सकता.

दरअसल यह बहस 10 साल की लड़की फूलमणि की मौत के साथ तेज़ हो गई थी. 1890 में फूलमणि की उस वक़्त मौत हो गई थी, जब उनके 30 साल के पति हरि मैती उनसे शारीरिक संबंध बना रहे थे.

तिलक ने लोगों से अपील की कि 'मैती पहले ही पत्नी को खो चुके हैं, अब उनकी और लानत-मलामत ना की जाए.' (The Mahratta, 10 August 1890, The Calcutta Child-Wife Murder Case, Editorial). इस त्रासदी ने समाज के हर वर्ग को एकजुट कर दिया और 1891 में 'सहमति की उम्र' बिल पास हो गया.


1900 के बाद तिलक राष्ट्रीय व्यक्तित्व बन चुके थे. लेकिन क्या उनका रवैया बदला था? इसका कोई सबूत नहीं मिलता.

तिलक ने हमेशा औपनिवेशिक सरकार की इस बात पर आलोचना की कि 'उनकी वजह से किसान, ज़मींदारों और सूदखोरों से मुक़्त हो गए.' (The Mahratta, 8 November 1903, Inamdar's Grievances, Editorial)

उन्होंने ईनामदार और खोटे जैसे ज़मींदारों का ज़ोर-शोर से बचाव किया. तिलक ने किसानों को मज़बूत बनाने के प्रयासों का हमेशा विरोध किया. (The Mahratta, 27 September 1903. The Khoti Bill, Editorial)

जब डीके. कर्वे ने 1915 में महिला यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो तिलक का कहना था, 'हमें एक औसत हिंदू लड़की को बहू के तौर पर देखना चाहिए जिसका अपने पति के घर के लोगों के प्रति ख़ास कर्तव्य हों.' उन्होंने कर्वे से कहा कि 'वो यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम को खाना बनाने, घर के अर्थशास्त्र और बच्चों की देखभाल जैसे विषयों तक सीमित कर दें.' (The Mahratta, 27 February 1916, Indian Women's University)

अपने अख़बार 'द महरट्टा' और नगरपालिका में अपने समर्थकों के ज़रिए तिलक ने लड़कियों के लिए मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का विरोध किया.

LOKAMANY TILAK VICHAR MANCH, PUNE

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मार्क्सवादी इतिहासकारों ने तिलक को हीरो बनाया

सुधारवादियों और भारतीय समाज में उठ रहे प्रगतिशील क़दमों पर अपने हमलों के इस पूरे दौर में तिलक का ब्रिटेन में कम्युनिस्ट पार्टी के भारतीय सदस्यों से काफ़ी नज़दीकी संबंध रहे.

तिलक ने लेनिन और रूसी क्रांति का समर्थन किया. सोवियत और भारतीय मार्क्सवादी इतिहासकार तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नेता मानते हैं.

ये रानाडे, गोखले और समावेशी भारत को बनाने वाले असली नेताओं को 'उदारवादी' कहकर ख़ारिज करते हैं.

इन्होंने जानबूझकर रानाडे को भुला दिया. इसके साथ ही ये तिलक के किसान, महिला विरोधी और जाति के समर्थन में छेड़े गए अभियानों को भूल गए. इन इतिहासकारों को सिर्फ़ उनका जेल जाना और 1908 की कपड़ा मिल हड़ताल में शामिल होना याद रहा.

आज एक सदी बाद भी महाराष्ट्र में पूरी तरह बर्बाद हो चुके किसान आत्महत्या कर रहे हैं. जाति का संघर्ष चरम पर है और महिलाएँ बड़े पैमाने पर भेदभाव का शिकार बनती हैं.

1880 में तिलक को एक जीवंत महाराष्ट्र मिला था. 1920 में उन्होंने इसे पूरी तरह बँटा हुआ छोड़ दिया और तिलक के इस अतिरेक के लिए औपनिवेशिक शासन को दोषी ठहराना ठीक नहीं है.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं. परिमला वी राव दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शिक्षा का इतिहास पढ़ाती हैं. उन्होंने तिलक पर Foundations of Tilak's Nationalism: Discrimination, Education and Hindutva नाम की क़िताब भी लिखी है. यह आलेख उन्होंने तिलक की पुण्यतिथि ( एक अगस्त, 1920 ) के सौ साल पूरे होने पर लिखा है.)

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